शनिवार, 3 अप्रैल 2021

अनुभूतियाँ 61


1
सुबह सुबह ही उठ कर तुम ने
बेपरवा जब ली अँगड़ाई
टूट गया दरपन शरमा कर
खुद से जब तुम खुद शरमाई
 
2
मजबूरी क्या क्या न तुम्हारी
जान रहा हूँ, मैं भी जानम !
क़दम तुम्हारे बँधे हुए थे .
आती भी तो कैसे, हमदम !
 
3
आज अचानक याद तुम्हारी
मलय गन्ध सी जब आई है
सोए सपने जाग उठे सब
सपनों नें ली अँगड़ाई  है
 
4
शाम इधर होने को आई
तुम अपना सामान उठा लो
अगर ग़लत कुछ हुआ कभी हो
दीवानापन समझ भुला दो
-आनन्द.पाठक-

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