शनिवार, 3 अप्रैल 2021

अनुभूतियाँ 62

 
1
भूलूँ भी तो भूलूँ कैसे ,
तुम्ही बता दो क्या करना है
मर मर कर हर पल जीना या
जी जी कर हर पल मरना है ?
 2
मैं हूँ मेरी क़लम हाथ में
और साथ में तनहाई है
महकी महकी याद तुम्हारी
जाने क्या कहने आई है ?
 3
अगर कभी लिखने भी बैठूँ
बीती बातों के अफ़साने
सिर्फ़ तुम्हारी जानिब से ही
भर जाएँगे सभी बहाने
 4
अलग हो गई राह तुम्हारी
नज़र तुम्हारी बदल गई अब
मैने तो स्वीकार कर लिया
दिल को यह स्वीकार हुआ कब ?

-आनन्द.पाठक-

 

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