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इतना भी आसान नहीं है
बरसों का है साथ -भुलाना
भूल भले ही तुम जाओ,पर
मुझको है ताउम्र निभाना
किसकी चिन्ता ,कैसी चिन्ता ?
दिल को रोना ,रो के रहेगा
टाल सका है कौन यहाँ कब
होना है जो हो के रहेगा
गया वक़्त फिर कब आता है
यादें रह जाती हैं मन में
कागज की थी नाव कभी, पर
बहुत भरोसा था बचपन में
साथ सफ़र में कितने आए
धीरे-धीरे दूर हो गए
हम सब हैं कठपुतली उसकी
नर्तन को मजबूर हो गए ।
-आनन्द.पाठक-
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