शनिवार, 3 अप्रैल 2021

अनुभूतियाँ 63

 
1
इतना भी आसान नहीं है
बरसों का है साथ -भुलाना
भूल भले ही तुम जाओ,पर
मुझको है ताउम्र  निभाना
 
2
किसकी चिन्ता ,कैसी चिन्ता ?
दिल को रोना ,रो के रहेगा
टाल सका है कौन यहाँ कब
होना है जो हो के रहेगा
 
3
गया वक़्त फिर कब आता है
यादें रह जाती हैं मन में
कागज की थी नाव कभी, पर
बहुत भरोसा था बचपन में
 
4
साथ सफ़र में कितने आए
धीरे-धीरे दूर हो गए
हम सब हैं कठपुतली उसकी
नर्तन को मजबूर हो गए ।  

-आनन्द.पाठक-

 

 

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