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वादा करना शौक़ तुम्हारा
और निभाना जब हो मुश्किल
झूठे वादे क्यॊ करती हो
राह देखता रहता है दिल
पल दो पल का मिलना क्या था
जीवन भर का दर्द मिला है
बेहतर होता ना ही मिलते
जब मिलने का यही सिला है
साथ छोड़ कर यूँ जाने की
क्यों इतनी जल्दी थी जानम!
जीवन भर की बात हुई थी
साथ निभाने को थी हमदम!
मेरे प्रश्नों का कब उत्तर
देती हो तुम मन से खुलकर
’हाँ, में ’ना” में या चुप हो कर
शब्द प्रकम्पित अधर पटल पर
-आनन्द.पाठक-
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