क़िस्त 67
सफ़र ख़तम होने वाला है
राह आख़िरी की तैयारी
बहुत शुक्रिया साथी मेरे !
बहुत निभाई तुम ने यारी
नया सफ़र हो तुम्हे मुबारक
साथी तुमको मिला नया है
जितना साथ रही तुम,काफी
मेरी छोड़ो मेरा क्या है !
होली का मौसम आया है,
’फ़गुनह्टा’ आँचल सरकाए।
मादक हुई हवाएँ, प्रियतम !
रह रह कर है मन भटकाए ।
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कुछ रही शिकायत तुम से भी
कुछ पपने ग़म का रोना था
दुनिया को मैं क्या बतलाता
जो होना था, वो होना था
-आनन्द.पाठक-
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