क़िस्त 76
301
एक तमन्ना थी बस दिल में
साथ साथ जो चलते हम तुम
सफ़र हमारा भी कट जाता
और न रहता दिल यह गुमसुम
302
बात भले हो छोटी लेकिन
चुभ जाती जब दिल के अन्दर
टीस हमेशा देती रहती
जाने अनजाने जीवन भर
303
मीठी मीठी यादों की उन
गलियों में अब फिर क्या जाना
छोड़ के जब मैं आ ही गया तो
सपनों से क्या दिल बहलाना
304
सावन आया ,बादल आए
नहीं सँदेशा कोई लाए
क्या क्या तुम पर गुज़री होगी
सोच ,जिया रह रह घबराए
-आनन्द.पाठक-
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