शुक्रवार, 20 अगस्त 2021

अनुभूतिया 77

 क़िस्त 77


305

चाँद कहीं हो, कहीं चाँदनी

ऐसा होना क्या है मुमकिन ?

दोनॊ के संबंध अमर हैं

फ़ूल कहाँ होते ख़ुश्बू बिन  ?


306

जीवन है तो आएँगे ही

आँधी तूफ़ाँ झंझावातें

कभी अँधेरा भी उतरेगा

कभी चाँदनीवाली रातें 


307

एक बार जो तुम आ जाओ

ग़म के  अँधियारे मिट जाएँ

नई सुबह में गीत प्रेम के 

हम तुम दोनॊं मिल कर गाएँ


308

कब तक बीती बातॊं को तुम

बोझ लिए दिल पर ढोऒगी ?

वक़्त अभी है पास तुम्हारे

आगे की तुम कब सोचेगी ?

-आनन्द.पाठक-


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें