क़िस्त 77
305
चाँद कहीं हो, कहीं चाँदनी
ऐसा होना क्या है मुमकिन ?
दोनॊ के संबंध अमर हैं
फ़ूल कहाँ होते ख़ुश्बू बिन ?
306
जीवन है तो आएँगे ही
आँधी तूफ़ाँ झंझावातें
कभी अँधेरा भी उतरेगा
कभी चाँदनीवाली रातें
307
एक बार जो तुम आ जाओ
ग़म के अँधियारे मिट जाएँ
नई सुबह में गीत प्रेम के
हम तुम दोनॊं मिल कर गाएँ
308
कब तक बीती बातॊं को तुम
बोझ लिए दिल पर ढोऒगी ?
वक़्त अभी है पास तुम्हारे
आगे की तुम कब सोचेगी ?
-आनन्द.पाठक-
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