क़िस्त 78
309
निश्छल तुम भी ,निश्छल मैं भी
लेकिन कुछ है दुनियादारी
एक ज़रूरत बन जाती है
कुछ बातों की पर्दादारी
310
नादाँ है ,दीवाना है वह
दुनिया उसको कहती पागल
प्यास बुझाता है धरती की
ख़ुद ही प्यासा रहता बादल
311
ना मैं राजा ,ना तुम रानी
पर दोनो की एक कहानी
आँख तुम्हारी भी नम रहती
आँख मेरी भी भर भर आनी
312
परबत घाटी सहरा सहरा
नदिया बहती रही निरन्तर
हँसती रहती ऊपर ऊपर
प्यास छुपा कर दिल के अन्दर
-आनन्द.पाठक-
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