शुक्रवार, 20 अगस्त 2021

अनुभूतियाँ 79

 क़िस्त 79


313

कलियाँ हँसती चमन महकता

फ़स्ल-ए-गुल का आना-जाना

कब तक जाने उनका होगा

भूले से इस दिल में आना


314

साहिल पर बैठे बैठे क्या

सोच रही हो तनहाई  में

मोती लेकर ही निकलोगी

उतरॊगी जब गहराई में 


315

ये तेरी ख़ामोशी क्यों है

कुछ तो बोल ,बता कर जाती

कोई ख़बर नहीं मिलती है

साँस अटकती जाती- आती ?


316

तुमने सुनाई जो भी कहानी

’सच ही होगा’ - मान लिया था

लेकिन क्या मालूम कि तुमने

झूठ सुना, सच नाम दिया था


-आनन्द.पाठक-


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