क़िस्त 79
313
कलियाँ हँसती चमन महकता
फ़स्ल-ए-गुल का आना-जाना
कब तक जाने उनका होगा
भूले से इस दिल में आना
314
साहिल पर बैठे बैठे क्या
सोच रही हो तनहाई में
मोती लेकर ही निकलोगी
उतरॊगी जब गहराई में
315
ये तेरी ख़ामोशी क्यों है
कुछ तो बोल ,बता कर जाती
कोई ख़बर नहीं मिलती है
साँस अटकती जाती- आती ?
316
तुमने सुनाई जो भी कहानी
’सच ही होगा’ - मान लिया था
लेकिन क्या मालूम कि तुमने
झूठ सुना, सच नाम दिया था
-आनन्द.पाठक-
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