शुक्रवार, 20 अगस्त 2021

अनुभूतियाँ 80

 क़िस्त 80


317

कल तक वो जो दम भरती थी

जिसकी दुआओं में था शामिल

आज उसी की नज़रॊ में हूँ 

नाक़िस मैं, नाक़ाबिल यह दिल


318

दुनिया को लगता है शायद

झूठे सब किस्से होते हैं

प्यार वफ़ा तनहाई लेकिन

जीवन के हिस्से होते हैं ।


319

कैसे हाथ बढ़ाते तुम तक

हाथ हमारे कटे हुए थे

वक़्त के हाथों कौन बचा है

हम पहले से लुटे हुए थे


320

जब से रूठ गई तुम मुझसे

रूठ गया ज्यों चाँद गगन से

नहीं बहारें अब आती हैं

जैसे खुशबू गई चमन से

-आनन्द पाठक-

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