क़िस्त 81
321
क्या मुझको मालूम नहीं है
दर्द छुपा हँसती रहती हो
जाने ऐसी अगन कौन सी
निश-दिन तुम जलती रहती हो
322
जो भी कमाया प्यार में मैने
दर्द मेरा मेरी थाती है
सुख के दिन कितने दिन तक
दुख तो आजीवन साथी है
323
जिसको चाहा हुई न मेरी
और किसी की भी न हुई तुम
लेकिन मैं महसूस कर रहा
मुझको छू कर गुज़र रही तुम
324
सबकी अपनी अपनी मंज़िल
सबकी अपनी दुनियादारी
सबके अपने अपने बंधन
सबकी अपनी है लाचारी
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