क़िस्त 82
325
साथ निभाया नहीं अगर तो
साथ नहीं भी छोड़ा तुम ने
नहीं जुड़ सके हम तुम तो क्या
दिल भी तो ना तोड़ा तुम ने
326
ज्ञानीध्यानी क्या समझेंगे
"ढाई-आखर" की ताकत को
ऊधौ जी भी कब समझे थे
गोपी की निर्मल चाहत को
327
चन्दन-वन की ख़ुशबू वाली
छू कर हवा गुज़र जाती है
बीते दिन की याद तुम्हारी
तन में सिहरन भर जाती है
328
प्यासा चातक, प्यासा बादल
और मछलियाँ जल में प्यासी
प्यासी नदिया ,प्यासी धरती
क्या शाश्वत है प्यास हमारी
-आनन्द.पाठक-
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