शुक्रवार, 20 अगस्त 2021

अनुभूतियाँ 82

 क़िस्त 82


325

साथ  निभाया नहीं अगर तो

साथ नहीं भी छोड़ा तुम ने

नहीं जुड़ सके हम तुम तो क्या

दिल भी तो ना तोड़ा तुम ने


326

 ज्ञानीध्यानी क्या समझेंगे

"ढाई-आखर" की ताकत को

ऊधौ जी भी कब  समझे थे

गोपी की निर्मल चाहत को


327

चन्दन-वन की ख़ुशबू वाली

छू कर हवा गुज़र जाती है

बीते दिन की याद तुम्हारी

तन में सिहरन भर जाती है


328

प्यासा चातक, प्यासा बादल

और मछलियाँ जल में प्यासी

प्यासी नदिया ,प्यासी धरती

क्या शाश्वत है प्यास हमारी

-आनन्द.पाठक-

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