क़िस्त 83
329
भौगोलिक सीमाओं में कब
बँध पाया है प्यार किसी का
जिसने बनाया हमको, तुमको
यह भी है उपहार उसी का
330
एक तुम्हारा चेहरा ही है
राह दिखाता रहता मुझको
चाहे जितनी भी दुष्कर हो
साथ निभाता रहता----
331
जो कहना है सीधे कह दो
इधर उधर की बातें क्या फिर
दिल जब पत्थर सा हो जाए
सुखद-दुखद सौगातें क्या फिर
332
डाल डाल पर उड़ उड़ बैठूँ
ऐसा नहीं परिंदा हूँ मैं
एक डाल पर जीना मरना
इसी बात पर ज़िंदा हूँ मैं
-आनन्द.पाठक-
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