क़िस्त 84
333
मन से उतर गया हो कोई
अब उनकी क्या बातें करना
सीखा कभी नहीं हो जिसने
वादों पर भी खरा उतरना
334
पास अगर आ कर बैठे तो
अपनी अपनी कह लें सुन लें
वक़्त मिला है पल-दो पल का
आज नए कुछ सपने बुन लें
335
नज़रों से गिर जाए कोई
दिल में पुन: उतरता कब है
टूट भले ही जाता दिल हो
लेकिन भला बिखरता कब है
336
साहिल का लहरों से मिलना
तुम ने क्यों कमजोरी समझा
लहरों को आलिंगन करना
तुम ने क्यों बरजोरी समझा
-आनन्द.पाठक-
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें