शुक्रवार, 20 अगस्त 2021

अनुभूतियाँ 85

 क़िस्त 85


337

हँस कर जीना एक कला है

रो-रो कर भी जीना क्यों है

छोटी छोटी बातों पर भी

निश-दिन विष का पीना क्यों है 


338

बन्द खिड़कियाँ खोलो मन की

आने दो कुछ नई हवाएँ

बन्द अँधेरे कमरों में हम 

आशाओं के दीप जलाएँ 


339

मन के अन्दर प्रेम का अमरित

मन के अन्दर विष नफ़रत का

निर्णय तुमको लेना होगा 

ग़लत सही अपनी चाहत का


340

बेमतलब सब बात करेंगे
दुनिया से उम्मीद न करना
अपने दुख ही साथ रहेगा
अपना दुख ही खुद है सहना

-आनन्द.पाठक-


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें