क़िस्त 85
337
हँस कर जीना एक कला है
रो-रो कर भी जीना क्यों है
छोटी छोटी बातों पर भी
निश-दिन विष का पीना क्यों है
338
बन्द खिड़कियाँ खोलो मन की
आने दो कुछ नई हवाएँ
बन्द अँधेरे कमरों में हम
आशाओं के दीप जलाएँ
339
मन के अन्दर प्रेम का अमरित
मन के अन्दर विष नफ़रत का
निर्णय तुमको लेना होगा
ग़लत सही अपनी चाहत का
340
बेमतलब सब बात करेंगे
दुनिया से उम्मीद न करना
अपने दुख ही साथ रहेगा
अपना दुख ही खुद है सहना
दुनिया से उम्मीद न करना
अपने दुख ही साथ रहेगा
अपना दुख ही खुद है सहना
-आनन्द.पाठक-
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