शुक्रवार, 20 अगस्त 2021

अनुभूतियाँ 86

 क़िस्त 86


341

देख तेरी तसवीर न जाने 

दिल को क्या क्या हो जाता है

पागल सा कुछ बातें करता

किस दुनिया में खो जाता है


342

छोटी-मोटी कमियाँ सब में

कुछ ना कुछ तो शामिल होती

मनुज मनुज है ,देव नहीं है

हस्ती किसकी कामिल होती


343

नदिया जबतक मर्यादा में 

बँध कर बहती, मन भावन है

तोड़ अगर तट्बन्ध बहे तो 

कर देती फिर जल-प्लावन है


344

मर्यादा के अन्दर रहना 

कितना सुखद भला लगता है

वरना तो हर शख़्स यहाँ पर

विष से जला बुझा लगता है


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