मंगलवार, 31 अगस्त 2021

अनुभूतियाँ 89

 

क़िस्त 89

 

353

धीरे धीरे छोड़ गए सब

एक तुम्ही से आस लगी है

तुम भी अब जाने को कहती

एक आख़िरी साँस बची है

 

354

प्रश्न तुम्हारा वहीं खड़ा है

मैं ही उत्तर ढूँढ न पाया

ग्यान-ध्यान क्या दर्शन क्या है

मैं ही मूढ़ समझ ना पाया

 

 

 

355

मेरी नहीं तो अपने दिल की

कभी कभी तो बातें सुन लो

सत्य-झूठ की राहें सम्मुख

जो चाहे तुम राहें चुन लो

 

356

सत्ता उसकॊ नूर उसी का

जड़-चेतन में वही समाया

यह तो अपनी अपनी क़िस्मत

किसने खोया किसने पाया


-आनन्द.पाठक-

 

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