क़िस्त 90
357
पता तुम्हारा सबको मालूम
योगी-भोगी या सन्यासी
वो भी लेकिन भटक रहे हैं
मन्दिर मन्दिर मथुरा-काशी
358
सावन की बदली जैसी तुम
जाने किधर किधर से उमड़ी
एक मेरा मन छोड़ के प्यासा
जाने किधर किध्र को बरसी
359
आसमान से उतर चाँदनी
करने आई सैर चमन की
जाते जाते पूछ रही थी
लेकर गई पता ’आनन’ की
360
कली कली में फूल फूल में
गन्ध तुम्हारी समा रही थॊ
पत्ते पत्ते की खुशबू ही
पता तुम्हारा बता रही थी
-आनन्द.पाठक-
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