मंगलवार, 31 अगस्त 2021

अनुभूतियाँ 90

 


क़िस्त 90


357

पता तुम्हारा सबको मालूम

योगी-भोगी या सन्यासी 

वो भी लेकिन भटक रहे हैं

मन्दिर मन्दिर मथुरा-काशी


358

सावन की बदली जैसी तुम

जाने किधर किधर से उमड़ी

एक मेरा मन छोड़ के प्यासा

जाने किधर किध्र को बरसी


359

आसमान से उतर चाँदनी

करने आई सैर चमन की

जाते जाते पूछ रही थी

लेकर गई पता ’आनन’ की


360

कली कली में फूल फूल में 

गन्ध तुम्हारी समा रही थॊ 

पत्ते पत्ते की खुशबू ही

पता तुम्हारा बता रही थी

-आनन्द.पाठक-

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