मंगलवार, 31 अगस्त 2021

अनुभूतियाँ 91

 क़िस्त 91


361

सन्दल सा है बदन तुम्हारा

छू कर आती हुईं हवाएँ

एक नशा सा भर देती हैं

और न हम फिर होश में आएँ

 

362

राह न रोकूँ ,हट जाऊँ मैं

अगर यही याचना तुम्हारी

और दुआ मैं क्या कर सकता 

पूरी हो कामना तुम्हारी


363

एक परीक्षा यह भी बाक़ी

गली तुम्हारी ,मुझे गुज़रना

पार हुए तो फिर जीना है

वरना मरने से क्या डरना


364

आ न सकूँगा द्वार तुम्हारे

यह न समझना प्यार नहीं है

तन मेरा हो भले कहीं भी

मन मेरा पर टिका वहीं है

-आनन्द.पाठक-


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