ग़ज़ल 253
221---2122--// 221-2122
क्या हाल-ए-दिल सुनाऊँ, क्या और कुछ बताऊँ
जब सब ख़बर है तुमको फिर और क्या छुपाऊँ
जो हो गया मु’अल्लिम, राहें बता रहे हैं-
मुझको पता नहीं है किस राह से मैं आऊँ
देखूँ उन्हें तो कैसे, इक धुन्द-सा घिरा है
निकलूँ कभी अना से तो साफ़ देख पाऊँ
दुनिया के कुछ फ़राइज़, हिर्स-ओ-हसद के फ़न्दे
मैं क़ैद हूँ हवस में, आऊँ तो कैसे आऊँ
आवाज़ दे रहा है, वह कौन जो बुलाता
कार-ए-जहाँ से फ़ुरसत पाऊँ अगर तो आऊँ
देखूँ जो दूर से भी जब आस्ताँ तुम्हारा
उस सिम्त बा अक़ीद्त सज़्दे में सर झुकाऊँ
हो आप की इजाज़त ’आनन’ की आरज़ू है
जिस राह आप गुज़रें पलकें उधर बिछाऊँ
-आनन्द.पाठक-
शब्दार्थ
मु’अल्लिम
अना से = अहम से
फ़राइज़ = फ़र्ज़ का ब0व0
हिर्स-ओ-हसद= लालच इर्ष्या लोभ मोह माया
कार-ए जहाँ से = दुनिया के कामों से
आस्तां = चौखट ,ड्योढ़ी
उस सिम्त = उस दिशा में
बाअक़ीदत = श्रद्धा पूर्वक
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