ग़ज़ल 291[56इ]
2122---2122---2122
वह अँधेरों की हिफ़ाज़त में लगा है
रोशनी की ही शिकायत में लगा है
धूप कितनी चढ़ गई उसको पता क्या
वह पुरानी ही हिकायत में लगा है
हो बलाएँ, मौत हो सैलाब आए
हादिसों पर वह सियासत में लगा है
इक तरफ़ मक़्तूल पर आँसू बहा कर
अब वह क़ातिल की जमानत में लगा है
ज़ाहिरन मजलूम की है बात करता
दल बदल वाली तिजारत में लगा है
बन्द कमरे में हमेशा सरनिगूँ जो
वह दिखावे की बग़ावत में लगा है
राग दरबारी सुनाने में लगे सब
और तू ’आनन’ दियानत में लगा है ?
-आनन्द पाठक-
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