ग़ज़ल 314[79]
2122---1212---22
आप ने जो भी कुछ किया होगा
हश्र में उसका फ़ैसला होगा
चाह कर भी न कह सका उस से
उसने आँखों से पढ़ लिया होगा
ख़ौफ़ खाया न जो दरिंदो से
आदमी देख कर डरा होगा
दिल पे दीवार उठ गई होगी
घर का आँगन भी जब बँटा होगा
अब भरोसा भी क्या करे कोई
राहजन ही जो रहनुमा होगा
जाहिलों की जमात में अब वो
ख़ुद को आरिफ़ बता रहा होगा
रोशनी की उमीद में ’आनन’
आख़िरी छोर पर खड़ा होगा
-आनन्द पाठक-
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