ग़ज़ल 315 [ 80इ]
212---212---212---212
ये अलग बात है वो मिला तो नहीं
दूर उससे मगर मैं रहा तो नहीं
एक रिश्ता तो है एक एहसास है
फूल से गंध होती जुदा तो नहीं
उनकी यादों मे दिल मुब्तिला हो गया
इश्क की यह कहीं इबतिदा तो नहीं
कौन आवाज़ देता है छुप कर मुझे
आजतक कोई मुझको दिखा तो नहीं
ध्यान में और लाऊँ मैं किसको भला
आप जैसा कोई दूसरा तो नहीं
लाख ’तीरथ’ किए आ गए हम वहीं
द्वार मन का था खुलना, खुला तो नहीं
आप जैसा भी चाहें समझ लीजिए
वैसे ’आनन’ है दिल का बुरा तो नहीं
-आनन्द.पाठक-
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