शुक्रवार, 12 जुलाई 2024

ग़ज़ल 388

 ग़ज़ल 388[52F]

2122---2122---212


वह धुआँ फ़ैला रहा है बेसबब

राग अपना गा रहा है बेसबब


सच उसे स्वीकार करना ही नहीं

झूठ पर इतरा रहा है बेसबब


आँख में पानी नहीं फिर क्यों उसे

आइना दिखला रहा है बेसबब


वह ’खटाखट’ क्या तुम्हें देगा कभी

वह तुम्हे भरमा रहा है बेसबब ।


अब सयानी हो गईं है मछलियां

जाल क्यों फ़ैला रहा है बेसबब । 


काम उसका ऊँची ऊँची फेंकना

बात में क्यों आ रहा है बेसबब ।


अब तो ’आनन’ तू उन्हें पहचान ले

क्यों तू धोखा खा रहा है बेसबब ।


-आनन्द.पाठक-

सं 01-07-24



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