ग़ज़ल 389[53F
221---2121---1221---212
हम बेनवा कि जब से हिमायत में लग गए
कुछ लोग ख़्वाहमख़्वाह शिकायत में लग गए ।
जब तोड़ने चला था पुरानी रवायतें ,
कुछ क़ौम के अमीर हिदायत में लग गए ।
जब मग़रबी हवाएँ कभी गाँव आ गईं
तह्ज़ीब-ओ- तरबियत की हिफ़ाज़त में लग गए ।
जो कुछ जमीर थी बची, उसको भी बेच कर
सुनते हैं आजकल वो सियासत में लग गए ।
जो सर कटा लिए थे वो गुमनाम ही रहे ,
नाख़ून कुछ कटा के शहादत में लग गए ।
दुनिया को बार बार खटकते रहे है, हम
क्यों इश्क़ की तवाफ़-ओ-इबादत में लग गए ।
’आनन’ अजीब हाल है लोगों का आजकल
करना था जिन्हे प्यार , अदावत में लग गए ।
-आनन्द.पाठक-
शब्दार्थ
बेनवा = बेकस ग़रीब मजलूम
अमीर = समाज के ठेकेदार
मग़रिबी हवाएँ = पाश्चात्य संकृति की हवाएँ
तहज़ीब-ओ-तर्बियत = संस्कार
तवाफ़-ओ-इबादत = परिक्रमा और पूजा
सं 01-07-24
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें