शुक्रवार, 12 जुलाई 2024

ग़ज़ल 389

 ग़ज़ल 389[53F

221---2121---1221---212


हम बेनवा कि जब से हिमायत में लग गए

कुछ लोग ख़्वाहमख़्वाह शिकायत में लग गए ।


जब तोड़ने चला था पुरानी रवायतें ,

कुछ क़ौम के अमीर हिदायत में लग गए ।


जब मग़रबी हवाएँ कभी गाँव आ गईं

तह्ज़ीब-ओ- तरबियत की हिफ़ाज़त में लग गए ।


जो कुछ जमीर थी बची, उसको भी बेच कर

सुनते हैं आजकल वो सियासत में लग गए ।


जो सर कटा लिए थे वो गुमनाम ही रहे ,

नाख़ून कुछ कटा के शहादत में लग गए ।


दुनिया को बार बार खटकते रहे है, हम

क्यों इश्क़ की तवाफ़-ओ-इबादत में लग गए ।


’आनन’ अजीब हाल है लोगों का आजकल

करना था जिन्हे प्यार , अदावत में लग गए ।


-आनन्द.पाठक-

शब्दार्थ 

बेनवा = बेकस ग़रीब मजलूम

अमीर = समाज के ठेकेदार

मग़रिबी हवाएँ = पाश्चात्य संकृति की हवाएँ
तहज़ीब-ओ-तर्बियत = संस्कार
तवाफ़-ओ-इबादत = परिक्रमा और पूजा 

सं 01-07-24

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